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________________ ( १८१ ) प्रातःकालमें होता है वह मध्यान्ह कालमें नही रहता, अपितु जो मध्यान्ह कालमें देखा जाता है वह सन्ध्या कालमें दृष्टिगोचर नही होता । इस लिये निज आत्मा विना पुद्गल सम्बन्धि जो जो पदार्थ हैं वे सर्व क्षणभंगुर हैं, नाशवान् हैं, जितने पुद्गल के सम्बन्ध मिले हुए हैं वे सब विनाशी हैं | इस प्रकारसे पदार्थों की अनित्यता विचारना उसीका नाम अनित्य भावना है । अशरण भावना ॥ संसारमें जीवोंको दुखोंसे पीड़ित होते हुएको केवल एक धर्मका ही शरण होता है, अन्य माता पिता भार्यादि कोई भी रक्षा करनेमें समर्थ नही होते तथा जब मृत्यु आती है उस कालमें कोई भी साथी नही बनता किन्तु एक धर्म ही है जो आत्माकी रक्षा करता है । अन्य जीव तो मृत्युके आने पर पृथक् २ हो जाते हैं किन्तु जब इन्द्र महाराज मृत्यु धर्मको प्राप्त होते हैं उस कालमें उनका कोई भी रक्षा नही कर सक्ता तो भला अन्य जीवोंकी वात ही कौन पूछता है ? तथा जितने पासवर्ती धन धान्यादि हैं वे भी अंतकालमें सहायक नदी वनते केवल आत्मस्वरूप ही अपना है और सर्व अशरण हैं, इस लिये यह उत्तम सामग्री जो जीवोंको प्राप्त हुई है उसको व्यर्थ न खोना चाहिये || }
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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