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________________ ( १७९ ) १९ कयण्णूओ-कृतज्ञ होना अर्थात् किये हुए परोपकार__का मानना क्योंकि कृतज्ञताके कारणसे सबी गुण जीवको प्राप्त __ हो जाते हैं जैसेकि-श्री स्थानांग सूत्रके चतुर्थ स्थानके चतुर्थ उद्देशमें लिखा है कि चतुर् कारणोंसे जीव स्वगुणोंका नाश कर बैठते हैं और चतुर् ही कारणों से स्वगुण दीप्त हो जाते हैं, यथा क्रोध करनेसे १ ईष्या करनेसे २ मिथ्यात्वमें प्रवेश करनेसे ३ और कृतघ्नता करनेसे ४ ।। अपितु चार ही कारणोंसे गुण दीप्त होते हैं, जैसेकि पुनः २ ज्ञानके अभ्यास करनेसे १ और गुर्वादिके छंदे वरतनेसे २ तथा गुर्वादिका आनंदपूर्वक कार्य करनेसे ३ और कृतज्ञ होनेसे ४ अर्थात् कृतज्ञता करनेसे सर्व प्रकारके सुख उपलब्ध होते हैं, इस लिये कृतज्ञ अवश्य ही होना चाहिये ।। २० परहियत्यकारीय-और सदैव काल ही परहितकारी __ होना चाहिये अर्थात् परोपकारी होना चाहिये, क्योंकि परोप कारी जीव सब ही का हितैपी होते हैं, परोपकारी ही जीव ध. मकी वृद्धि कर सक्ते हैं, परोपकारीसे सर्व जीव हित करते हैं तथा परहितकारी जीव ऊच श्रेणिको प्राप्त हो जाता है, इस लिये परोपकारता अवश्य ही आदरणीय हैं ।
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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