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________________ ( १६ ) ले मसहित मेरी, तूं चोरी करना छोडदे || ढेर || माल देखी गैर का, दिल चोर का आशक हुवे । साफ नियत नहीं रहे, तूं चोरी करना छोडदे || १३| निगाह उसकी चौतरफ, रहती है मानिंद चील के । परतीत कोई नहीं गिने, तूं चोरी करना छोडदे || २ || पुलिस से छिपता रहे, एक दिन तो पकड़ा जायगा । बैंत से मारे तुझे, तूं चोरी करना छोडदे ॥ ३ ॥ नापने में सोलने में, चोरी महसूल की करे । रिशवत भी खाना है यही, तूं चोरी करना छोडदे || ४ || इराम सों से कभी, श्राराम तो मिलता नहीं । दीन दुनियां में मना, तू चोरी करना छोडदे | ५ || नुकसान गर किस के करे तो, श्राह लगती है ज़बर | ख़ाक में मिल जायगा, तूं चोरी करना छोडदे || ६ || सबर कर पर माल से, हक बात पर कायम रहे । मल कहता तुझे, तूं चोरी करना छोडदे ॥ ७ ॥ तर्ज़ पूर्ववत् गज़ल परनार निषेध पर । लाखों कामी पिट चुके, परनार के परसंग से । मुनिराज कहे सब बचो, परनार के परसंग से ।। ढेर || दीपक की लो ऊपर, पड पतंग परता है सही। ऐसे कामी कट मरे, परनार के रसग से || १ || पर वार का जो हुश्न है, मानो अग्नि के सा । तन धन सन को होमते, परनार के परसंग से ||२||
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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