SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १५६ ) क्रम करना, हिरण्य सुवर्णके परिमाणको अतिक्रम करना, द्विपाद ( मनुष्यादि ) चतुष्पाद ( पशवादिके) के परिमाणको अतिक्रम करना, और धन धान्यके परिमाणको अतिक्रम करना, फिर घरके उपकर्णके परिमाणको अतिक्रम करना वही पंचम अनुव्रतके अतिचार हैं अर्थात् जितना जिस वस्तुका परिमाण किया हो उनको उल्लंघन करना वही अतिचार है; इस लिये अतिचारोंको वर्जके पंचम अनुव्रत शुद्ध पालन करे || और षष्टम, सप्तम, अष्टम इन तीनों व्रतोंको गुणवत कहते है क्योंकि यह तीन गुणत्रत पांच ही अनुव्रतोंको गुणकारी हैं, और पांच ही अनुव्रत इनके द्वारा सुरक्षित होते हैं | अथ प्रथम गुण व्रत विषय ॥ दिग्व्रत ॥ सुयोग्य पाठक गण ! प्रथम गुणत्रतका नाम दिग्वत है जिसका अर्थ यह है कि दिशाओं का परिमाण करना, जैसेकि पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, उर्ध्व, अधो, इन दिशाओं में स्वकाया करके गमण करनेका परिमाण करना । और पांच आस्रव सेवनका परित्याग करना क्योंकि जितनी मर्यादा करेगा उतही आस्रव निरोध होगा । सो इस व्रत के भी पांच ही अतिहैं जैसे कि -
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy