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और अन्य पुरुषौको असत्य उपदेश करना 8 । तथा असत्य ही लेख लिखने ५ । इन पांच ही अतिचारोंको त्याग करके द्वितीय व्रत शुद्ध ग्रहण करे || तृतीय अनुव्रत विषय ॥ थुलाउ दिन्नादापाओ वेरमणं ॥
तृतीय अनुव्रत स्थूल चोरीका परित्यागरूप है जैसेकि ताला पडि कूची, गांठ छेदन करना, किसीकी भित्ति तोड़ना, मागमें लूटना, डांके मारने; क्योंकि यह ऐसा निंदनीय कर्म है कि दोनों लोगों में भयाणक दशा करनेवाला है और इसके द्वारा वधकी प्राप्ति होना तो स्वाभाविक बात है । फिर इस कर्म कर्ताओं के दया तो रही नही सक्ति, सव मित्र उसीके ही शत्रु रूप बन जाते हैं और इस कॅर्मके द्वारा प्राणि अनेक कष्ट को भोगते हैं, इस लिये तृतीय व्रतके धारण करनेवाला गृहस्थ पांच अतिचारोंका भी परिहार करे जैसे कि
तेषा मे १ तक्कर पडगे २ विरुद्ध रजाकम्मे ३ कूड़ तोले कूड़ माणि ४ तप्पमिरूवग ववहारे ५ ॥