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________________ (१४२ ) __ जो पुरुष अन्याय करनेवाले होते हैं वे. दोनों लोगोंमें कष्ट सहन करते हैं जैसेकि इस लोगमें चौर्यादि कर्म करनेवाळे वध बंधनोंसे पीड़ित होते हैं और परलोकमें नरकादि गतिओंके कष्ट भोगते हैं ॥ और हेमचन्द्राचार्य अपने बनाये योगशास्त्रके प्रथम प्रकाशमें गृहस्य धर्य सम्बन्धि निम्न प्रकारसे श्लोक लिखते हैं: न्यायसम्पन्नविभवः शिष्टाचारप्रशंसकः । कुलशीलसमैः सार्द्ध कृतो द्वाहोऽन्यगोत्रजैः ।। १ ॥ पापभीरुः प्रसिद्धं च देशाचारं समाचरन् । अवर्णवादी न क्वापि राजादिषु विशेषतः ॥ २ ॥ अनतिव्यक्तगुप्ते च स्थाने सुमातिवेश्मिके । अनेकनिर्गमद्वारविवर्जितनिकेतनः ।। ३ ।। कृतसङ्गः सदाचारैर्मातापित्रोश्च पूजकः । त्यजन्नुपप्लुतं स्थानमप्रवृत्तश्च गर्हिते ॥ ४ ॥ व्ययमायोचितं, कुर्वन् वेषं. वित्तानुसारतः ।। अष्टभिधीगुणैर्युक्तः शृण्वानो धर्मसत्यहम् ॥ ५॥ अजीर्णे भोजनत्यागी. काले भोक्ता च सात्म्यतः । अन्योऽन्याप्रतिबंधेन-त्रिवर्गमपि साधयन् ॥ ६॥
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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