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________________ (११) कदर जो चाहे दिला तूं, जूदा वाजी छोडदे। सर्व व्यसन (बदकार) का सरदार है, तूं जूवा बाजी छोडदे ॥ टेर। इश्क इसका है नुरा, नापाक दिल रहता सदा । रंज़ो गम की खान है, तू जूवा वाजी छोडदे ॥१॥ द्रौपदी के चीर छीने, पाएडवों के देखते । राज्य भी गया हाथ से, तूं जूवा बाजी छोडदे ॥ २ ॥ महान् राजा नल से, वनवास मे फिरते फिरे और तो क्या चीज़ है, तूं जूवा बाजी छोडदे ॥३॥ अङ्गल तेरी गुम करे, सत्य धर्म से करती जुदा । धनवान को निर्धन करे, तूं जूवा वानी छोडदे ॥ ५॥ मकान और दुकान जेवर, रखे गिरवे जायके । मा बाप जोरू नहीं कहे, तूं जूबा बाजी छोडदे ॥ ६॥ कई बाचे वन गये, कई कम उमर में मर गये । फ़ायदा कुछ भी नहीं, तू जूवा वाजी छोडदे ॥ ७ ॥ दुनियां का रहे नहीं दीन का, गुरू का रहे नहीं पीर का । नर जन्म भी जारे निफल, तं ज्वा बाजी छोडदे ॥८॥ गुरू के परसाद से, कहे चौथमल सुन तो जरा । मान ले आराम दोगा, जुदा वाजी छोडदे ॥ ६ ॥ ___ तर्ज पूर्ववत् । गज़ल गोश्त (मांस) निषेध पर । सस्त दिल हो जायगा तूं, गोरत खाना बोदडे । रहम फिर रहता नही तूं, गोरत खाना छोडदे ॥ टेर ॥ :-'
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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