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प्रथम अध्याय
वासवाद्यैः सुरैः सर्वैः योऽयंते मेरुमस्तके ।
प्राप्तवान् पञ्चकल्याणं वासुदेवस्ततो हि सः ॥४०॥ - जो वासव आदि सर्व देवोंके द्वारा सुमेरुके मस्तक पर पूजा - गया और जो पंच कल्याणकरूप सातिशय वैभवको प्राप्त हुआ, उसे 'वासुदेव' कहते हैं ॥१०॥ ___ अनन्तदर्शनं ज्ञानं कर्मा रिक्षयकारणम् ।
यस्यानन्तसुखं वीर्य सोऽनन्तोऽनन्तसद्गुणः ॥४॥ जिसका अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन कर्मरूप शत्रओंके क्षयका कारण है, जिससे अनन्त सुख और वीर्य प्राप्त है, तथा जो _. अनन्त सद्गुणवाला है, उसे 'अनन्त' कहते हैं ॥४१॥ .. सर्वोत्तमगुणैर्युक्तं प्राप्तं सर्वोत्तमं पदम् ।
सर्वभूतहितो यस्मात्तेनासौ पुरुपोत्तमः ॥४२॥
जो सर्व-श्रेष्ठ गुणोंसे युक्त है, जिसने सर्वोत्तम पद प्राप्त कर - लिया है और जो सर्व प्राणियों के हितमें रत है, उसे 'पुरुषोत्तम'
कहते हैं ॥४२॥
- प्राणिनां हितवेदोक्तं नैष्ठिकः सङ्गवर्जितः । . . . . सर्वभापश्चतुर्वक्त्रो ब्रह्मासौ कामवर्जितः ॥४३॥ . .
- जिसने प्राणियोंके हितका उपदेश दिया है, जो निष्ठावान् है, - सर्व संग ( परिग्रह ) से रहित है, सर्व भाषाओंमें उपदेश देता है, ... समवसरणमें जिसके चार मुख दिखाई देते हैं और जो काम-विकारसे रहित है, उसे 'ब्रह्मा' कहते हैं ॥४३॥ .
यस्य वाक्यामृतं पीत्वा भव्या मुक्तिमुपागताः। . . . दत्तं येनाभयं दानं सत्त्वानां स पितामहः ॥४४॥ ___...जिसके वचनरूप अमृतका पान करके अगणित भव्य पुरुषोंने