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प्रथम अध्याय स स्वयम्भूः स्वयं भूतं सज्ज्ञानं यस्य केवलम् । .
विश्वस्य ग्राहकं नित्यं युगपद्दर्शनं तथा ॥३०॥ . जिसके समस्त विश्वका युगपद् देखने और जानने वाला अविनश्वर केवलदर्शन और केवलज्ञान स्वयं उत्पन्न हुआ है, उसे 'स्वयम्भू' कहते हैं ॥३०॥ . येनाप्तं परमैश्वर्य परानन्दसुखास्पदम् ।
बोधरूपं कृतार्थोऽसावीश्वरः पटुभिः स्मृतः ॥३१॥ .... जिसने ज्ञानरूप परम ऐश्वर्य और परम आनन्द रूप सुखके -- स्थानको अर्थात् शिवपदको प्राप्त कर लिया है, उस कृतकृत्य आत्मा
को विचक्षण जन 'ईश्वर' कहते हैं ॥३१॥ .. शिवं परमकल्याणं निर्वाणं शान्तमक्षयम् । .
प्राप्तं मुक्तिपदं येन स शिवः परिकीर्तितः ॥३२॥ : जिसने आकुलता-रहित, परम शान्त और परम कल्याणरूप अक्षय मुक्ति-पदको प्राप्त किया है, उसे 'शिव' कहते हैं ॥३२॥
जन्म-मृत्यु-जराख्यानि पुराणि ध्यानवह्निना। .
दग्धानि येन देवेन तं नौमि त्रिपुरान्तकम् ॥३३॥ ... जिस देवने शुक्लध्यानरूपी अग्निके द्वारा जन्म-जरा-मृत्युरूप
तीन पुरोंको जला दिया है, उसे त्रिपुरान्तक कहते हैं। ऐसे त्रिपुरा__... न्तक अरिहन्त परमेष्ठीको मैं नमस्कार करता हूँ ॥३३॥ . .
महामोहादयो दोपा ध्वस्ता येन यदृच्छया। - महाभवार्णवोत्तीर्णे महादेवः स कीर्तितः ॥३४॥
जिस महापुरुषने यहच्छासे ( लीलामात्रसे.) महामोह आदि । दोषोंको ध्वस्त कर दिया है और जो संसाररूप महासागरके पारको प्राप्त हो चुका है, उसे 'महादेव' कहते हैं ॥३४॥