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________________ परिशिष्ट 346 4,66 4,65 14,82 1,50 14,121 6,26 4,13 6,2 2,26 12,18 4,136 4,71 14,58 सामायिकसंस्कारं सामायिकं श्रितानां * सुखमारब्धयोगस्य सुप्रभातं सदा यस्य सुप्तोन्मत्ताद्यवस्थैव सुवर्णमौक्तिकादीनां सूक्ष्मा पि न खलु हिंसा सूक्ष्मोपशान्तसंक्षीण सूर्या? वह्निसत्कारो सूर्युपाध्यायसाधूनां सेवाकृषिवाणिज्य सेवातन्द्राः सुरेन्द्राद्याः सोऽहमित्यात्तसंस्कार संख्येयाश्चाप्यसंख्येयाः संग्रहमुच्चस्थानं संज्वलननोकषायाणां संयमद्वयरक्षार्थ संयम्य करणग्राम संज्वलनोदये भ्रष्टो संवरो हि भवत्येता संसारभीरता नित्य संसारमूलमारम्भाः संसारविषयातीतं संसाराग्निशिखाच्छेदे संसारिणश्च मुक्ताश्च स्तवनादौ तनुत्यागः स्नानाङ्गरागवर्तिक पुरुषार्थ० 151 " 150 समाधि० 52 प्रातस्व० 42 समाधि० 63 तत्त्वार्थ० 4,37 पुरुषार्थ० 46 तत्त्वार्थ० 2,17 सं० भावसं० 405 तत्त्वार्थ० 7,27 रत्नक० 144 आचारसा० 5,66 समाधि० 28 तत्त्वार्थ० 3,20 पुरुषार्थ० 168 सं० पंचसं० 1,26 अाचारसा० 1,43 इष्टोप० 22 सं० पंचसं० 1,20 तत्त्वार्थ. 6,26 , 4,48 योगशा० 2,110 तत्त्वार्थ० 45 यशस्ति० भा० 2 पृ० 412 तत्त्वार्थ० 2,14 प्राचारसा० 1,36 प्रशमरति०४३ 86 4,108 14,24 11,16 6,40 4,72 13,6 5,52 7,7 5,26 14,7
SR No.010233
Book TitleJain Dharmamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1965
Total Pages177
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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