________________ श्लोकानुक्रमणिका . . इस अनुक्रमणिकाके प्रथम स्तम्भमें सङ्कलित श्लोकोंका प्रथम चरण * दिया गया है / दूसरे स्तम्भमें वे श्लोक जिस ग्रन्थके हैं, उसका नाम देकर प्रथम अंक द्वारा अध्याय, सर्ग आदि की और द्वितीय अङ्क द्वारा श्लोकसंख्याकी सूचना की गई है। तीसरे स्तम्भमें प्रथम अङ्क द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थके अध्यायका और द्वितीय अङ्क द्वारा श्लोक-संख्याका निर्देश किया गया है। 1,5 अकामनिर्जरा बाल तत्त्वार्थसा० 4,42 6,34 अकालाघीतिराचार्यो . . . . . .. 4.15 6,7 अक्षद्वारैरविश्रान्तं ज्ञानार्ण० 32,12 अक्षार्थानां परिसंख्यानं रत्नक० 82 4,103 अगम्यं यन्मृगाङ्कस्य ज्ञानार्ण० 7,11 अचेतनमिदं दृश्य समाधि० 46 14,76 अजस्रं जीवघातित्वं .. तत्त्वार्थ० 4,31 6,23 अज्ञानतिमिरव्याप्ति . रत्नक० 18 अज्ञानपूर्विका चेष्टा ज्ञानार्ण० 7,16 3,20 अज्ञापितं न जानन्ति समाधि० 58 14,88 अणुस्कन्धविभेदेन तत्त्वार्थ० 3,56 - 8,16 अतः प्रागेव निश्चेयः / 'ज्ञानार्ण० 32,4 . . 1,2 अत्यन्तनिशितघारं पुरुषार्थ 56 4,23 अत्रातिविस्तरेणालं पञ्चाध्या० 2,665 . 2,65 अद्रोहः सर्वसत्त्वेषु यशस्ति० भा० 2 पृ० 4125,56 2,22 . पक्षाच्या