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ग्रन्थ और ग्रन्थकार - परिचय
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मेघचन्द्रका स्वर्गवास शक संवत् १०३७ ( वि० सं० १९७२ ) में हुआ । तदनुसार वीरनन्दिका समय विक्रमकी बारहवीं शताब्दीका उत्तरार्ध सिद्ध होता है ।
जैनधर्मामृतके पाँचवें अध्यायमें मुनियों के २८ मूलगुणों का वर्णन इसी आचारसारके प्रथम अध्यायसे किया गया है । यह ग्रन्थ भी माणिकचन्द्र ग्रन्थमालासे वि० सं० १९७४ में पं० इन्द्रलालजी शास्त्री से सम्पादित और पं० मनोहरलालजी शास्त्रीसे संशोधित होकर प्रकट हुआ है ।
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१२. हेमचन्द्र और योगशास्त्र
योगशास्त्र - इस ग्रन्थमें योग या ध्यानका वर्णन करनेके साथ मुनि और श्रावक धर्मका विस्तारसे विवेचन किया गया है। इसके रचयिता आ० हेमचन्द्र हैं, जो कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय के एक महान् आचार्य हुए हैं । इन्होंने गुजरात के तत्कालीन शासक कुमारपालको सम्बोधित करके जैनधर्मका महान् प्रचार किया है। हेमचन्द्रने धर्मशास्त्र के अतिरिक्त व्याकरण, न्याय, साहित्य आदि विविध विषयोंपर अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है ।
योगशास्त्र में १२ प्रकाश हैं, जिनमें क्रमशः योगका माहात्म्य एवं त्रयोदश प्रकार चारित्र, सम्यक्त्व, पञ्चाणुव्रत, गुणत्रत और शिक्षात्रत, द्वादश अनुप्रेक्षा एवं मैत्री आदि भावनाओं का स्वरूप, प्राणायाम, ध्यान, धारणादिका स्वरूप, ध्यानकी सिद्धि एवं पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत धर्मध्यानका स्वरूप, शुक्लध्यानका स्वरूप, आत्मा और योगी
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दिका वर्णन किया गया है । योगशास्त्र के समस्त श्लोकोंकी संख्या ९८८ है । योगशास्त्रकी रचना श्रा० शुभचन्द्रके ज्ञानार्णवकी आभारी है । ज्ञानार्णवके अनेकों श्लोक साधारणसे शब्द भेदके साथ योगशास्त्रमें ज्यों के त्यों पाये जाते हैं ।
आ० हेमचन्द्र वि० सं० १२२६ तक जीवित रहे हैं और इसके पूर्व