________________ 170 जैनधर्मामृत जन्म, जरा और मरण यह त्रयी पुरुषोंके संसार वढ़ानेका कारण है। यह त्रयी ( तीनका समूह ) जिस रत्नत्रयरूपी त्रयीसे क्षीण होती है, वही सच्ची 'त्रयी' मानी गई है // 62 // अहिंसः सबतो ज्ञानी निरीहो निष्परिग्रहः / __ यः स्यात्स ब्राह्मणः सत्यं न तु जातिमन्दान्धलः // 63 // जो हिंसा-रहित है, उत्तम व्रतका धारक है, ज्ञानी है, इच्छारहित है, और परिग्रह-रहित है, वही सच्चा 'ब्राह्मण है। किन्तु जो जातिके मदसे अन्धा है, वह ब्राह्मण नहीं है / // 63 // सा जातिः परलोकाय यस्याः सद्धर्मसम्भवः / न हि शस्याय जायेत शुद्धा भूर्वीजवर्जिता // 6 // जिससे सच्चे धर्मकी उत्पत्ति हो, वही जाति परलोकमें कल्याणकारिणी है, क्योंकि, बीज-रहित शुद्ध भी पृथ्वी धान्यको उत्पन्न नहीं कर सकती // 64 // स शैवो यः शिवज्ञात्मा स बौद्धो योऽन्तरात्मभृत् / स सांख्यो यः प्रसंख्यावान् स द्विजो यो न जन्मवान् // 65 // जो शिव ( कल्याण या मोक्ष ) को जानने वाला आत्मा है, वह 'शैव' है, जो अन्तरात्माका ज्ञायक है वह 'बौद्ध' है, जो प्रत्याख्यानका धारक है, वह 'सांख्य' है, और जो पुनः जन्म नहीं धारण करेगा, वह सच्चा 'द्विज' है। __मुनियोंके धर्मका विशेष वर्णन जाननेके लिए मूलाचार, आचारसार, यशस्तिलक उत्तरार्ध, चारित्रसार और अनगारधर्मामृत देखना चाहिए। इस प्रकार मुनिधर्मका वर्णन करनेवाला पाँचवा अध्याय समाप्त हुना।