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. .... तृतीय अध्याय न दोनों नयोंके भी उत्तरभेद अनेक होते हैं, उन्हें नयचक्र या लापपद्धतिसे जानना चाहिए । ' . . दुःखज्वलनतप्तानां संसारोग्रमरुस्थले।
विज्ञानमेव जन्तूनां सुधाम्बुप्रीणनक्षमः ॥१३॥ इस संसाररूपी उग्र मरुस्थलमें दुःखरूपी अग्निसे संतप्त जीवों । यह सत्यार्थ ज्ञान ही अमृतरूपी जलसे तृप्त करनेके लिए समर्थ - अर्थात् संसारके दुःख मिटानेवाला सम्यग्ज्ञान ही है ॥१३॥
निरालोकं जगत्सर्वमज्ञानतिमिराहतम् ।
. तावदास्ते उदेत्युच्चैनं यावज्ज्ञानभास्करः ॥१४॥ _ जबतक ज्ञानरूपी सूर्यका सातिशय उदय नहीं होता है, तभी क यह समस्त जगत् अज्ञानरूपी अन्धकारसे आच्छादित रहता , किन्तु ज्ञानके प्रकट होते ही अज्ञानका विनाश हो जाता ॥१४॥ . बोध एव दृढ़ः पाशो हृपीकमृगवन्धने ।
गारुडश्च महामन्त्रश्चित्तभोगिविनिग्रह ॥१५॥ __ इन्द्रियरूप मृगोंको बाँधनेके लिए ज्ञान ही एक दृढ़ पाश है, गोंकि ज्ञानके बिना इन्द्रियाँ वशमें नहीं होती। तथा चित्तरूपी
का निग्रह करनेके लिए ज्ञान ही एकमात्र गारुडमहामन्त्र है गोंकि ज्ञानसे ही मन वशीभूत होता है ॥१५॥
निशातं विद्धि निस्त्रिंशं भवारातिनिपातने ।
तृतीयमथवा नेत्रं विश्वतत्त्वप्रकाशने ॥१६॥ . • ज्ञान ही तो. संसाररूपी शत्रुके नष्ट करनेके लिए. तीक्ष्ण खड्ग और ज्ञान ही समस्त तत्त्वोंको प्रकाशित करने के लिए तीसरा है ॥१६॥ ...