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( २६ ) किन्तु यह अवश्य है कि इस संसार में कारणों के अनुसार 'परिवर्तन ( तबदीली) भी होती रहती है। जैसे कहीं कहीं पर जमीन के नीचे गन्धक आदि स्फोटक (भड़क उठने वाले) पदार्थ पाये जाते हैं। यदि किसी समय वे बहुत जोर से भड़क उठे तो उससे भूकम्प (भूचाल ) हो गया जिससे कहीं कोई टापू समुद्र में मिल गया और कहीं से समुद्र का पानी हट गया जमीन निकल आई। कहीं नगर उजड़ कर जंगल हो जाता है, जैसे हस्तिनापुर आदि और कहीं जंगल आदि उजाड़ स्थान तथा पहाड़ी प्रदेश बसा कर सुन्दर नगर बन जाते हैं। जैसे उदयपुर, देहली, आदि इस प्रकार भूचाल, तूफान, शत्रु राजा का श्राक्रमण आग लग जाना, भारी जल वर्षा होना इत्यादि अनेक कारण 'पाकर कहीं कैसा ही और कहीं कैसा ही परिवर्तन अपने आप हो जाता है।
इस कारण अनादि समय से बराबर चला आया हुआ संसार विविध कारणों से समय समय पर बदलता रहता है किन्तु उसका पूर्ण नाश (नेस्त नाबूद ) न कभी हुआ, न था और न कभी होगा ही।
इसी प्रकार जीवों की भी अवस्था है संसारी जीव भी संसार में अनादिकाल से अब तक अनेक प्रकार के शरीरों में चले आ रहे हैं। जैसे मनुष्य जाति के जीव संसार में पहले हमेशा से (अनादि समय से) थे, रहे हैं और रहेंगे उनके शरीर उत्पन्न होने का खास कोई समय नहीं कि “मनुष्य अमुक समय से हा संसार में पैदा हुए, उस समय से पहले मनुष्यों की संसार में