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को छोड़कर दान कर देना या अपने पुत्र आदि को दे देना सो परिग्रह त्याग प्रतिमा है।
१०-अनुमति त्याग प्रतिमा। गृहस्थ के किसी कार्य में सम्मति, ( सलाह ) श्राज्ञा देने का त्याग कर देना, उदासीन होकर मन्दिर आदि एकान्त स्थान में धर्म साधन करना अनुमति त्याग प्रतिमा है।
११-उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा। अपने उद्देश से (खास अपने वास्ते ) बने हुये भोजन का त्याग कर देना यानी जो भोजन श्रावक ने खास उस ग्यारहवीं प्रतिमा वाले के लिये न बनाया हो सो शुद्ध भोजन करना उदिष्ट भोजन का न करना सो उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा है। __ इस प्रतिमा का आचरण पालने वाले दो प्रकार के होते हैं क्षुल्लक और ऐलक । जो छोटी चादर और लंगोट के सिवाय
और कोई वस्त्र अपने पास नहीं रखते, बैठ कर भोजन करते हैं वे क्षुल्लक होते हैं। और जिनके पास केवल एक लंगोट के और कोई कपड़ा नहीं होता सारा आचरण जिनका मुनियों सरीखा होता है, खड़े होकर हाथ में भोजन करते हैं सो ऐलक होते हैं । इस प्रकार गृहस्थ श्रावक का आचरण है।
जैन साधु का माचरण । संक्षेप से जैन साधु का आचरण इस प्रकार है:
साधु अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत और परिग्रह त्याग ये पांच महाव्रत धारण करते हैं