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(११) परन्तु यह भ्रमपूर्ण विश्वास नितांत प्रमाण रहित ही है और उ ही लोगोंका है जो मा. न्माएँ यथार्थ दृश्यसे अनिभिज्ञ है और उनके निकट अत्मा इस जन्मके उपरांत फिर अगाड़ी जन्म धारण ही नहीं करेगी। सभ्यताको इन्द्रिय लोलुपता मान कर उसका अनर्थ करना न्याय संगत नहीं है । यथार्थमें सभ्यताके अर्थ आत्मशिक्षासे ही सम्बन्ध रखते हैं. कारण कि जीवात्मां यहां भी निरन्तर विकाशको प्राप्त होती रहती हैं. और दूसरे जन्मोंमें गी। इन्द्रियलोलुपता कितनी भी सृदृष्टि क्यों न हो परन्तु अंततः अनंत आत्माके गुणोंकी घातक ही है कारण पहिले तो आत्मा- . का अस्तित्व ज्ञान ही प्रगट नहीं होने देती और फिर इन पापाचारोंके कारण उसे नर्क