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एकको भी दिला सके निनके लिए जीवात्मा मारे मारे फिर रहे हैं । समुचित प्रणालीका दंग कारण-कार्य सिद्धान्तपर निर्भर है।
उपर्युक्त वर्णति कारणवश ही भैन धर्ममें किसी भी व्यक्तिसे सुख अथवा मोक्षकी याचना करनेका अथवा तदप्राप्ति हेतु उनकी पूना करने का निषेध है। ये सुख और मोक्ष आत्मा की निन वस्तुगे हैं। इस कारण बाह्य प्रकरणोंसे प्राप्त नहीं हो सक्ती । अतः अन्य प्रनिलित सैद्धान्तिक मतों के सदृश जैन धर्म परमात्मपदका निरूपण नहीं करता है और उन सर्व पूर्ण सिद्धोंकी उपासना उसी ढंगसे करनेका उपदेश देता है जिस ढंगसे हम अपने गुरुभोंकी विनय करते हैं। सर्वोचतम विद्वान् गुरुके लिए परमोत्कट विनयकी आवश्यक्ता यथेष्ट ही है।