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पूरो मिलियो नहिं रे हां, जब जाल्यो पाखंड ॥ मो० ॥५॥ पूरवें कांइ दीयो नहिरे हां, इ. हां पण न पायो नाम ॥ मो० ॥आगे पण पावे नहिं रे हां, तीन नव दीसे ने श्राम ॥ मो० ॥ ॥६॥ मारगमें मिलियां थकां रे हां, बोले नडी वाय॥ मो०॥ हेला निंदा करे घणी रे हां, कह्यो कठां लगें जाय । मो०॥७॥ साधुजी कोपक रे नहीं रे हां, एवा शबद सुखीया कान ॥ मो०॥ माहारं कांइ न बीगडुयं रे हां, क्षमा करे धरी ज्ञान ॥ मो०॥८॥अरजुण माली मोहो टा मुनिरे हां, सह्या परिसह भरपूर ॥ मो० ॥ महिनामें मुक्तें गया रे हां, कर्म करया चकचूर ॥मो०॥९॥ करकंडुकरम काटियां रे हां, ध्या यो निर्मल ध्यान ॥ मो० ॥ मृगावती मोहोटी सती रे हां, पामी केवलज्ञान ॥ मो० ॥१०॥ चलो चंद्ररौद्र तणोरे हां, जाल्या मारगमाय॥ मो० ॥ केवल पाम्या निर्मला रे हां, गुरा दीयो पण खमाय ॥ मो० ॥११॥बारमा परिसह त णी रेहां, पुरी थइने ढाल । मो० ॥ समता ज लशूलायने रेहां,मेटोमनरी जाल ॥मो० ॥१२॥