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________________ जैन धर्म की बहुत-सी रचनाएँ न केवल भारतीय साहित्य, अपितु विश्व साहित्य के विशाल भंडार की अनमोल मणियाँ है । ११ जैनाचार्यों की साहित्य-सेवा ----प्रसगवश यह उल्लेख कर देना अनुचित न होगा कि जैनाचार्यों ने साहित्य के किसी भी तत्कालीन प्रचलित अग को अछ्ता नहीं छोडा है। अध्यात्म, नीति और दर्शन तो उनके प्रधान और प्रियं विण्य रहे ही है, व्याकरण, काव्य, कोप, अलकार, छद, वैद्यक, ज्योतिप, मंत्र, राजनीति, इतिहास प्रादि-आदि सभी विषयो पर उन्होने अपनी कलम चलाई, और भारतीय साहित्य को विपुलता, नूतनता एव दिव्यता प्रदान की। लोक-भापात्रो को साहित्यिक रूप में उपस्थित करने की मूल कल्पना जैनाचार्यो की ही देन है। दक्षिण मे भी कर्णाटक भापा के प्राचीन साहित्य मे से जैनाचार्यो की कृतिया पृथक कर दी जाए, तो उसमे कुछ शेप नहीं रह जाता। इस प्रकार भारत की प्राकृत, मस्कृत तथा विभिन्न प्रान्तीय भाषाप्रो की समृद्धि मे जैनो का बहुत बडा भाग है। अवधिज्ञान -अभी तक जिस मति और श्रुत-ज्ञान का निरूपण किया गया है. वह परोक्ष ज्ञान था, क्योकि उसकी उत्पत्ति इन्द्रियो और मन पर अवाम्बित थी, यह दोनो ज्ञान न्यूनाधिक मात्रा मे सभी ससारी जीवो को होते ही है । एकेन्द्रिय से लेकर पचेन्द्रिय तक कोई जीव ऐमा नहीं, जिसे यह प्राप्त न हो। यह बात दूगरी है कि सम्यग्दृष्टि के वह जान सम्यग्ज्ञान और मिथ्यादृष्टि के मिथ्यानान होते है, मगर सामान्य रूप से वह होते अवश्य है। अब जिन प्रत्यक्ष जानो का स्वरूप दिखलाना है, वे ऐसे नही । जहाँ तक मनग्यो और नीर्यकरो का सम्बन्ध है, उन्हे अवधिज्ञान साधना के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है। वह सावना मौजूदा जन्म की भी हो सकती है, और पूर्वजन्म की भी । अात्मा पुन पुन जन्म-मरण कर रहा है। वह जब नवीन जन्म लेता है, तो कोरा नही जन्मता, वरन् अपने पूर्वजन्मो के भले-बुरे सस्कारो से अनुप्राणित भी होता है। अतएव जिस यात्मा ने पूर्व जन्म मे साधना की है, वह उनले फलम्वन वर्तमान जन्म मे अवधिनान प्राप्त कर लेता है। अवधि का अर्थ है 'सीमा' या 'मर्यादा' । जब अात्मा इन्द्रिय और मन की महायता के बिना ही, गाक्षात् यात्मिक शक्ति के द्वारा रूपी पदार्थो को,
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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