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मुक्ति मार्ग
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तो किसी मे तपोबल, किसी मे वाक्ाक्ति, तो किसी मे लेखन शक्ति होती है । जिसमे जो शक्ति हो उसी के द्वारा धर्मशासन का प्रभाव बढाना सम्यग्दृष्टि अपना कर्त्तव्य मानता है ।
सम्यक्त्व के इन ग्राठ ग्रगो का भलीभाँति पालन करने वाला पुरुष ही सम्यग्दष्टि के पद का अधिकारी होता है ।
पुरिसा ! तुममेव तुमं- मित्तं कि बहिया मित्तमिच्छसो ? पुरिसा ! अभिनिगिज्झ एवं
अत्ताणमेव पमोक्खसि ।
दुक्खा
हे पुरुष } ही तेरा मित्र है | हे पुरुष अपनी आत्मा को वश मे कर
।
होगा ।
आ० ३।३. ११७-८
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बाहर क्यो मित्र की खोज करता है ऐसा करने से तू सर्व दुखो से मुक्त