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प्रस्तावना मै 'जैनधर्म', ग्रन्थ का अभिनन्दन करते हुए परमानन्द का अनुभव कर रहा हूँ क्योंकि आदरणीय सुशील कुमार जी जैसे महामुनि इस ग्रन्थ के लेखक है और फिर विद्वान् एवं विद्यार्थी तथा साथ ही सामान्य मुमुक्षु सज्जनो के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त उपादेय है। ग्रन्थ की भाषा सरल एवं सुन्दर हिन्दी रखी गई है।
मुनि सुशीलकुमार जी स्वयं सस्कृत के एक प्रकाण्ड पण्डित है, उनके जीवन मे जैनधर्म का तत्वज्ञान व जैनधर्म का आचारधर्म दोनो ही साकार हो उठे है। जैनधर्म के प्रसार में उन्होने अपने (जनसाधु )जीवन का उत्सर्ग किया है। यह ग्रन्थ उन्ही के द्वारा निर्माण हुआ है। अहिसा जैनधर्म का सर्वोच्च सिद्धान्त है। हिसा के विश्वव्यापी प्रचार के लिए मुनि जी कृतसकल्प ही नहीं, अपितु उनके जीवन का परम उद्देश्य है। आज जगत् द्वितीय महायुद्ध के उपरान्त तृतीय शीतयुद्ध की आशंका से आक्रान्त है। मानव जाति की रक्षा के लिए अहिंसा की भावना को जगत् और जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रतिष्ठापित करने के लिए कोई कसर उठा नहीं रखनी चाहिए । अहिंसा के सद्भाव से ही मानवता जीवित रह सकती है, शान्ति सॉस ले सकती है और विश्व को विध्वंस और विनाश के महाप्रलय में विलीन कर देने वाले शस्त्रो व अस्त्रो से सुरक्षित रखा जा सकता है। युद्ध एवं शस्त्रों का उत्तर अहिंसा है।
भारत के महान संतों जैसे जैनधर्म के तीर्थंकर ऋषभदेव व भ० महावीर के उपदेशों को हमें पढ़ना चाहिए। आज उन्हें अपने जीवन म उतारने का सबसे ठीक समय आ पहुंचा है। क्योंकि जैनधर्म का तत्वज्ञान अनेकान्त (सापेक्ष्य पद्धति) पर आधारित है, और जैनधर्म का आचार अहिंसा पर प्रतिष्ठापित । जैनधर्म कोई पारस्परिक विचारो, ऐहिक व पारलौकिक मान्यताओ पर अन्ध श्रद्धा रखकर चलने वाला सम्प्रदाय नही है, वह मूलतः एक विशुद्ध वैज्ञानिक धर्म है। उसका विकास एवं प्रसार वैज्ञानिक ढंग से हुआ है। क्योंकि जैनधर्म का भौतिक विज्ञान,
और आत्मविद्या का क्रमिक अन्वेषण आधुनिक विज्ञान के सिद्धान्तो से समानता रखता है। जैनधर्म ने विज्ञान के उन सभी प्रमुख सिद्धान्तो का विस्तृत वर्णन किया है। जैसे कि पदार्थ विद्या, प्राणिशास्त्र, मनोविज्ञान, और काल, गति, स्थिति, आकाश एवं तत्वानुसंधान । श्री जगदीश चन्द्र बसु ने वनस्पति मे जीवन के अस्तित्व को सिद्ध कर जैनधर्म के पवित्र धर्मशास्त्र भगवती सूत्र के वनस्पति कायिक जीवों के चेतनत्व को प्रमाणित किया है।
प्रत्येक धर्म ने मानव जाति के लिए नये-नये ज्ञानक्षेत्रो को खोला है । यही कारण है कि प्रत्येक धर्म अपने आप में कुछ असाधारण विशेषताओं से युक्त