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जैन धर्म
महावीर की परम्परा की रक्षा भगवान् महावीर ने वुराई और अविवेक के विरुद्ध जो प्राग मुलगाई थी उसे निरन्तर जलाए रखने वाले और उसकी चिनगारियो को नभालने वाले उन बुराइयो और अविवेक को नष्ट न कर सके अपितु अविवेक उन्हें नष्ट कर गया । जिस जड़वाट, जातिवाद और पूजीवाद के विरुद्ध महावीर उठे थे, वही जैनियो मे घर कर गया।
अन्ती एव अप्रत्याख्यानी का जैनधर्म में स्थान नहीं था, न है, लेकिन वे ही व्रतभ्रष्ट जाति से जैन कहलाने लगे। आज महावीर-परम्परा की रक्षा करने की सर्वाधिक आवश्यकता उठ खड़ी हुई है। अहिंसा, त्याग, अपरिग्रह और प्रेम के मार्ग से जातीय जीवन विचलित हो गया है। उसे अपने मार्ग और अपनी गति पर लाना है। भगवान महावीर की परम्परा ही उसे जीवित रख सकती है।
विश्व के नाम महावीर का संदेश भगवान् ने अहिसा को मुक्ति स्वरूपिणी माना है। प्रेम और अहिंसा का उनका दिव्य सन्देश पिछले २५०० वर्षों से विश्व की सत्रस्त मानवता को शाति देता रहा है, लेकिन आज जब देश और विदेश की सीमाए टूट गई। और मनुष्य ने समय और दूरी पर विजय प्राप्त कर ली है, उसकी समस्या और देश की सीमाए बहुत वृहद् रूप ले चुकी है। ससार प्रतिपल संकटापन्न स्थिति से घिरा रहता है, क्योकि भारत जैसे अहिंसक देशो की कमी है, और कतिपय देश युद्ध और हिसा मे ही मानव-जाति का कल्याण देख रहे है।
लेकिन, महावीर का मार्ग अपना कर मानव जाति एक दिव्य गाति को प्राप्त करेगी जो अहिंसा का सम्बल बनेगी, और अहिंसा, सतप्त संसार को अपने शासन में लायेगी। यह शासन आत्मशासन होगा और ऐसे शासन में मनुष्य अपने लिए नहीं, दूसरो के लिए जिएगा।
तव महावीर का सन्देश-~अन्तर्राष्ट्रीय समाज रचना का, विश्वपालिग्रामेंट का, विश्व-साकार का यंत्र, तंत्र और मत्र बनेगा।
और वह दिन दूर नहीं है, क्योकि मनुष्यता अपनी विषमतायो और विडम्बनायो मे परित्राण पाने को बद्ध-परिकर हो, खडी है ।