________________
जैन धर्म गौतमबुद्ध आदि आदि भगवान् महावीर के समान काल में अपना-अपना धर्म स्थापित कर रहे थे । इनमे जामाली भगवान् महावीर के जामाता थे, जो महावीर के केवल-ज्ञान होने पर १५ वर्ष पश्चात् महावीर के विरोधी वन गए थे ।
गोशालक गोगालक भगवान महावीर का शिष्य था । उसके सम्प्रदाय का उल्लेख आजीवक मत के नाम से आज भी कही-कही शास्त्रों मे पाया जाता है। बौद्ध पिटकों में भी उसका उल्लेख है।
गोगालक का जीवन अत्यन्त विलक्षण था, किन्तु जितना विलक्षण था उतना ही उच्छृखल भी था। उसका जन्म ब्राह्मण कुल मे हुआ था। भगवान् महावीर से उसे ज्ञान-प्राप्ति हुई। आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना मे उसके जीवन का विकास हुआ । लेकिन उसकी बुद्धि ने पलटा खाया और अरिहन्त देव से उसने वाद-विवाद कर पराजय का मुख देखा। अन्त मे उसने क्षमा याचना की, तत्पश्चात् उसका देहान्त हो गया यही गोशालक का रेखाचित्र है।
जैन शास्त्रों के अनुसार गोशालक को भगवान् महावीर से आध्यात्मिक जान की विरासत मिली थी। यहा तक कि उच्च विद्याएं भी उसने भगवान् की कृपा से प्राप्त की थी। जिनमे तेजोलेश्या जैसी लधिया भी है लेकिन उसकी उद्दण्ड वृत्ति और उच्छृखलता ने उसको आजीवक सम्प्रदाय बनाने के चक्कर मे डाला, और उसने केवल नियति को मुख्य सिद्धान्त बनाकर सम्प्रदाय की स्थापना की।
उस समय तो, गोशालक का वर्चस्व एव प्रभाव इतना था कि सम्प्रदाय चल निकला। लेकिन उसकी मृत्यु के उपरान्त उसका प्रभाव कम हो गया । गोशालक का जीवन सुन्दर होते हुए भी शालीनता-हीन था, अतः महावीर ने उसे अपने सुशिप्य के स्थान पर कुशिष्य रूप मे स्वीकार किया है ।
___ गोशालक और महावीर का वर्णन भगवती सूत्र मे बहुत विस्तार से दिया गया है। उसकी तेजोलेश्या से दो साधुओ का भस्म हो जाना और भगवान् के दाह का होना भी शास्त्र मे वर्णित है।
उपर्युक्त सभी धर्म-प्रवर्तको से भगवान महावीर का दार्शनिक, सैद्धान्तिक अयवा आचारविषयक बहुते मतभेद है । महावीर समन्वय-दृष्टि अथवा अनेकान्तात्मक विचारणा को ही मुख्य महत्व देते थे। वे अाग्रह को बुरा मानते थे।