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श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के प्राचार्य जैनधर्म दिवाकर,
जैनागम रत्नाकर श्री प्रात्माराम जी महाराज
-
की
सम्मति
बहुत वर्षों से ऐसी पुस्तक की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी जो एक अजैन व्यक्ति को जैन सिद्धांतों * का परिचय कराए। संतोष का विषय है कि एस०
एस० जैन कान्फ्रेस के कर्मठ और जैन धर्म प्रभावक र कार्यकर्ताओं ने इस ओर ध्यान दिया है और जैनधर्म नाम की पुस्तक तैयार करवाई है। पुस्तक मैने आद्योपान्त सुनी है। भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से सन्तोषप्रद है। वर्षों से समाज को जो कमी खटक रही थी, आशा है उसे पूरा करने मे यह पुस्तक में सहायक सिद्ध होगी।
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