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________________ जैन-शिष्टाचार २४७ १ फूलमाला सचित्त आदि वस्तुप्रो को हटा देना यावश्यक है। २ अचित्त वस्तुओ का त्याग ग्रावश्यक नहीं। ३ छत्र-चवर आदि ऐश्वर्य के चिह्न तथा जूता, छतरी आदि पदार्थ न ले जाना। ४ तीर्थकर या साधु पर दृष्टि पडते ही हाथ जोड़ना। ५ मन की चचलता त्याग कर एकाग्र होना। (भगवती सूत्र) २ बन्दनापाठ-तीर्थकर या साधु के समक्ष पहुँच कर निम्नलिखित पाठ पढ कर उन्हे वन्दना की जाती है-- "तिक्खुत्तो आयाहिण, पयाहिण करेमि, वदामि नमसामि, सक्कारेमि, समाणेमि, कल्लाण मगल देवय चेइय पज्जुवासामि, मत्थएण वदामि।" ___-आवश्यक सूत्र, सामायिक पाठ। अर्थात्--भगवन् | मै तीन बार दक्षिण से प्रारभ करके प्रदक्षिणा करता हूँ, वन्दना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, सन्मान करता हूँ। आप कल्याण और मंगल के रूप है। देवता स्वरूप है, चैत्य-ज्ञान स्वरूप है। मै आपकी पुन -पुन. उपासना करता हूँ। मस्तक झुका कर वन्दना करता हूँ। ३ भमणों का पारस्परिक शिष्टाचार-~जैन मघ मे वन्दनीयता का आधार पर्यायज्येष्ठता है। अर्थात् प्रत्येक मुनि अपने से पूर्व दीक्षित मुनि को नमस्कार करता है। इसमे उम्र आदि किसी अन्य बात का विचार नहीं किया जाता । पुत्र यदि पहले दीक्षित हो चुका है और पिता पश्चात् दीक्षित हुआ है तो पिता अपने पुत्र को नमस्कार करेगा। सूत्रकृताग अ० २, उ० २ सूत्र मे बतलाया है कि चक्रवर्ती राजा भी यदि बाद मे मुनि दीक्षा ग्रहण करे तो उसका कर्तव्य है कि वह पूर्वदीक्षित अपने दास के दास को भी लज्जा और सकोच न करता हुया वन्दना करे। मुनि वन जाने पर मनुष्य का गृहस्थ जीवन समाप्त हो जाता है और एक नवीन ही जीवन का सूत्रपात होता है। ४ श्रावकों का पारस्परिक शिष्टाचार-शास्त्रीय उल्लेखो से पता चलता है कि प्राचीन काल मे श्राविकाएँ और श्रावक भी अपने से बडे श्रावक को वन्दना किया करते थे। -भगवतीसूत्र, १२शतक, शख-पोक्खली सवाद ।
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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