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धम्मज्जियं च ववहारे, बुद्धेहायरियं सया। तमायरतो ववहारं, गरहं नाभि गच्छई ॥
-उत्तराध्ययन, अ० १, गा० ४२ ।
धर्महीन नीति जगत् के लिए अभिशाप है, और नीतिहीन धर्म कोरी वैयक्तिक साधना है, अत महावीर कहते है कि
हे साधक, जो व्यवहार धर्म से उत्पन्न है और ज्ञानी पुरुषो ने जिनका सदा आचरण किया उन व्यवहारो का आचरण करने वाला पुरुष कभी निन्दा को प्राप्त नहीं होता।
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चारित्र और नीतिशास्त्र