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मनोविज्ञान
इन्द्रियां
प्राणी काम और भोग का आयतन है । काम मूर्त और ग्ररूपी है, किन्तु भोग, रूपी और ग्ररूपी दोनो प्रकार का होता है । काम, कामना और स्पृहा का अस्तित्व जीव में ही उपलब्ध होता है । जड से जीव की भिन्नता काम से भी पाई जाती है, क्योकि काम का अस्तित्व जीव में ही है, अजीव मे नही होता । जीव ही कामी और भोगी बन सकता है, अजीव नही । काम के दो रूप हैं, रूप और शब्द । मनोज रूप और मधुर शब्दो की लालसा ही काम है । यद्यपि रूप श्रौर शब्द दोनो ही पौद्गलिक परिवर्तित पर्याय है, और भोग तीन प्रकार का होता है । १ गध, २ रस, ३ स्पर्श ।
काम और भोग मे सबसे बडा अन्तर यह है कि भोग सयोग की अपेक्षा रखता है । गध, रस और स्पर्श के सयोग हुए बिना भोग का कारण नही बन सकते, किन्तु रूप और शब्द मे सयोग की अधिक अपेक्षा नही रहती । यद्यपि शास्त्रकारो ने शब्द को भी भोग के अन्दर ही गिना है, क्योकि शब्दो का सयोग कर्णेन्द्रिय के साथ हुए बिना शब्द का आनन्द नही लिया जा सकता, किन्तु सूक्ष्मता के कारण उसे काम मे भी गिन लिया जाता है । हा, पाचो इन्द्रियो मे से नेत्र इन्द्रिय को कुछ भिन्न प्रकार का माना गया है, क्योकि नेत्र वस्तु के ससर्ग