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( १५६ ) वर्ष राशी हदय वर्तनासभवादिति राजज्ञानरूपो. श्रीन परततः । स्वयं राजपदार्थस्तु मप्रस्तुतः । ततःप्रस्तुताथधीपाराप्रस्तुतार्थनिराकरणार्थ निक्षेपस्यावश्यकता ।
एप निक्षेपश्चतुविधः, नामस्थापनाद्रव्यभावविकल्पादिति ।। तर लोकसव्यवहारार्थ वस्तुनः नामकरण नामनिक्षेपः । अस्मिन् हि न जातिद्रव्यगुणक्रियाणा प्रयोजकत्वं । केवलमत्र वक्त रभिप्राय कारणं । महावीरादयोऽभिख्या लोकसंव्यवहारार्थ निक्षिप्ता न खलु वीरत्वगुणप्रधाना । २. ननु यदि वीरतादिगुणापेक्षया कस्यचिन्महावीर इति नाम क्रियेत तहि स नामनिक्षेप: स्याद् वा नवेति चेत्-स भावनिक्षेप
सकता । इस तरह यहा राजा का ज्ञान रूप ही अर्थ ग्राह्य है। खुद राजा पदार्थ तो अग्राह्य है। इसलिए प्रस्तुत अर्थ को स्वीकार करने और अप्रस्तुत प्रथं को दूर करने के लिये निक्षेप की पाव. श्यकता है।
यह निक्षेप चार प्रकार का है- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव के भेद से । इनमें लोक व्यवहार चलाने के लिए वस्तु का कुछ भी नाम रख देने को नाम-निक्षेप कहते हैं। इस निक्षेप में जाति, द्रव्य, गुण और क्रिया का कुछ भी प्रयोजन नहीं है। सिर्फ वक्ता का अभिप्राय ही कारण है। महावीर वगैरह जा भी नाम हैं वे लोक व्यवहार चलाने के लिए है-निश्चय से वहा वीरतादि गुरगो की प्रधानता नहीं है।
शंका-यदि वीरता वगैरह गुणो की अपेक्षा से किसी का महावीर नाम रखा जाय तो वह नाम-निक्षेप होगा या नहीं। . समाधान~-गुण की अपेक्षा अगर महावीर नाम है तो वह भाव-निक्षेप होगा न कि नाम-निक्षेप । किसी का नाम महावार