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सप्तभंगीविवेचनम् प्रमाणनयैरधिगम इत्यनेन द्विविधोऽधिगम प्रतिपादित', प्रमाणात्मको नयात्मकश्चेति । साकल्येन · तत्वाधिगम. प्रमाणात्मक देशतस्तत्त्वाधिगमो नयात्मकः । अयं द्विविधोऽपि भेदः सप्तधा प्रवतते विधिप्रतिपेचप्राधान्यात् । इयमेव च प्रमाणसप्तभगी नयसप्तभंगीति च व्यवहियते। सप्ताना भङ्गानांवाक्यानां समाहार -समूह सप्तभगीति तदर्थ. । तानि च वाक्यानि-स्यादस्त्येव घटः, स्यान्नास्त्येव घट., स्यादस्ति नास्ति च घट., स्यादवक्तव्य एव घट., स्यादस्ति चावक्तव्यश्च,
सप्त भंगी-विचार 1930 उमास्वामी ने "प्रमाणनयैरधिगम." इस सूत्र के द्वारा दो प्रकार का अधिगम बतलाया है-प्रमाणात्मक और नयात्मक । तत्त्वों के सम्पूर्ण ज्ञान को प्रमाणात्मक. अधिगम कहा है तो एक देश तत्त्वाधिगम को नयात्मक अधिगम बतलाया है। विधि और प्रतिषेध की प्रधानता से यह दो प्रकार का भेद भी सात सात तरह से प्रवृत्त होता है। और यही प्रमाण सप्त-भंगी और नय सप्त-भंगी के नाम से कही जाता है। सात भंगो के-वाक्यों के समाहार अर्थात् समूह को सप्तभंगी कहते हैं । वे मात वाक्य इस प्रकार हैं-(१) स्यादस्त्येव घट' अर्थात् घट किसी अपेक्षा से है ही। (२) स्यानास्त्येव घट: अर्थात् घट किसी अपेक्षा से नही ही है। (३) स्यादस्ति नास्ति च घट: अर्थात घट किसी अपेक्षा से अस्ति नास्ति रूप ही है (४). स्यादवक्तव्य एव घटः अर्थात् घट किसी अपेक्षा से कहा ही नही जा मकता (५) म्यादस्ति बावक्तव्यश्च अर्थात् घडा