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निषेध करोति । प्रतिपक्षसव्यपेक्ष-वर्तमान-पर्यायमात्रग्राहित्वादस्य । क्षणिकैकान्तस्तु तदाभास. ।
लिङ्गसख्याकालादीनां भेदाच्छब्दस्य भेदकथनं शब्दनय । दार भार्या कलत्रमित्यत्र लिङ्गभेदात् त्रयाणां भिन्नत्व । जलमापो वर्षा ऋतु इत्यादौ संख्याभिन्नत्वाद् भिन्नत्वम् । विश्वदृश्वाऽस्य पुत्रो जनिता भावि कृत्यमासीदित्यादौ कालभिन्नत्वाद् भिन्नत्वम् । लिङ्गादिभेद विना शब्दानामेव नानात्वैकान्तस्तदाभासः ।
पर्यायभेदात् पदार्थनानात्वनिरूपक. समभिरूढनयः । शब्दभेदश्चेदस्ति अर्थभेदेनाऽपि अवश्यं भवितव्यम् । अन्यथा शब्द
वर्तमान पर्याय का ग्रहण करने वाला है। अर्थात यह नय पर्याय की मुख्यता भले ही करे पर द्रव्य का अस्तित्व उसकी दृष्टि मे गौण रूप में रहता ही है । वौद्ध का सर्वथा क्षणिकवाद ऋजूसूत्र नयाभास है क्योंकि उसमे मात्र पर्याय रहती हे-द्रव्य का विलोप हो जाता है।
लिंग, सख्या, काल, कारक के भेद से शब्द भेद होने पर अर्थभेद कहना शब्द नय है। दार. भार्या, कलत्र इनमे लिंग भेदहोने से तीनो शब्दो के अर्थमे भिन्नता है। जल, आप, वर्षा ऋतु इत्यादि शब्दो मे सख्या की भिन्नता होवे से अर्थ की भिन्नता है। विश्व को देखने वाला इसके पुत्र हो गया- यहा होने वाले कार्य को हो गया ऐसा कहा गया अतः काल भिन्नता होने से अर्थ की भिन्नता है। लिगादि भेद के बिना एकान्त रूप से शब्दो की ही भिन्नता से अर्थ भिन्नता मानना शब्द नयाभास है।
पर्यायवाची शब्दो के भेद से अर्थभेद निरूपण करने वाला समभिरूढ नय होता है। यदि शब्द-भेद है तो अर्थभेद अवश्य होना चाहिए, नही तो शब्द भिन्नता व्यर्थ होगी। ऐश्वर्य क्रिया