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हेतोः त्रीणि रूपाणि । पञ्चरूपाणि तू एतत्त्रयविशिष्टावाधितविषयत्वासत्प्रतिपक्षत्वे । यदि हेतो त्रैरूप्यं पांचरूप्य वा लक्षण स्यात् का हानिरिति चेन्न, त्रैरूप्ये पांचरूप्ये वा हेतोर्लक्षणेऽव्यात्यतिव्याप्तिदोपापत्ते । उदेष्यति शकट कृत्तिकोदयादित्यादिसद्धतौ त्रैरूप्यपाचरूप्याभावेऽपि गमकत्वदर्शनादव्याप्ति । गभस्था मैत्रतनयः श्यामो मैत्रतनयत्वादित्यादि असद्धेतौ त्रैरूप्यपांचरूप्यसंभवेऽपि गमकत्वादर्शनादतिव्याप्तिः । अन्यथानुपन्नत्वं हेतोलक्षणं तु न कुत्रापि अतिव्याप्नोति । न च तस्य कुत्रचिदव्याप्तिर्वाअत एतदेव हेतोः समीचीनं लक्षण । यत्रान्यथानुपपत्तिस्तत्र न रूप्यस्य पाचरूष्यस्य वाऽऽवश्यकता । यत्र चैपा
विषयत्व और असत्प्रतिपक्षत्व ये पाच रूप है । यदि हेतु का त्रिरूपता या पच रूपता लक्षण हो तो क्या नुकसान है ?
समाधान-ऐसा कहना ठीक नही । हेतु का लक्षण त्रिरूपत्व और पच रूपत्व मानने मे अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोष का प्रसग आता है। शकट अर्थात् रोहिणी नक्षत्र का उदय होगा क्योकि कृत्तिका का उदय हो गया है-इस समीचीन हेतु मे न त्रिरूपता है और न पंच रूपता, फिर भी साध्य का ज्ञान कराने वाला होने से प्रमाण है। इस हेतु मे हेतु का लक्षण घटा नही अतः अव्याप्ति दोप दूषित है । गर्भ मे आया हुआ मित्र का पुत्र श्याम होगा क्योकि वह मित्र का पुत्र है-जैसे कि उसके अन्य श्याम पुत्र । इस तरह के असमीचीन हेतु मे विरूपता और पंचरूपता मिलने पर भी वह अपने साध्य का ज्ञान नही कराता अतः अतिव्याप्ति दोप से दूषित है । हेतु का लक्षण अन्यथानपपन्नत्व मानने पर तो न कही अतिव्याप्ति दोष पाता है और न कही अव्याप्ति ही, इसलिए यही हेतु का बढिया लक्षण है। जहा अन्यथानुपपत्ति है वहा विरूपता या पंचरूपता की पावश्यकता ही नहीं। और जहा अन्यथानुपपत्ति नहीं है वहा ये