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जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा
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मानने में समन्वयवादी जैनो को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। प्रत्यक्ष और परोक्ष का उदर इतना विशाल है कि उसमें प्रमाणभेद समाने में किंचित् भी कठिनाई नहीं होती। प्रमाण-विभाग
प्रमाण के मुख्य भेद दो है-प्रत्यक्ष और परोक्ष। प्रत्यक्ष के दो भेद होते हैं-व्यवहार प्रत्यक्ष और परमार्थ-प्रत्यक्ष। व्यवहार प्रत्यक्ष के चार विभाग है-अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। परमार्थ-प्रत्यक्ष के तीन विभाग हैं-केवल, अवधि और मनः पर्यव । परोक्ष के पॉच मेद हैं-स्मृति, प्रत्यभिज्ञा, तर्क, अनुमान और आगम।
ज्ञान
श्रावृतदशा
अनावृतदशा
असाक्षात्याही
साक्षात् ग्राही साक्षात् ग्राही
मात
केवल ज्ञान
यथार्थ
अयथार्थ
यथार्थ अयथार्थ
यथार्थ
परोक्ष
प्रत्यक्ष
संव्यवहारिक प्रत्यक्ष
परोक्ष आगम
शब्द
J प्रमाण वाक्य नयवाक्य
३०.)
अवग्रह ईहा अवाय धारणा स्मृति प्रत्समिशा तर्क अनुमान