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________________ शब्द प्रयोग को प्रक्रिया संसारी जीवो का समूचा व्यवहार पदार्थाश्रित है | पदार्थ अनेक हैं। उन सवका व्यवहार एक साथ नही होता । वे अपनी पर्याय मे पृथक्-पृथक होते हैं। उनकी पहिचान भी पृथक्-पृथक् होनी चाहिए। यह एक बात है। दूसरी वात है-मनुष्य का व्यवहार सहयोगी है। मनुष्य करता और कराता है, देता है और लेता है, सीखता है और सिखाता है। पदार्थ के बिना क्रिया नही होती, देन-लेन नही होता, सीखना-सिखाना भी नहीं होता। इस व्यवहार का साधन चाहिए। उसके विना "क्या करे, क्या दे, किसे जाने” इसका कोई समाधान नहीं मिलता। इन समस्याओं को सुलझाने के लिए सकेत-पद्धति का विकास हुआ। शब्द और अर्थ परस्पर सापेक्ष माने जाने लगे। __ स्वरूप की दृष्टि से पदार्थ और शब्द में कोई अपनापन नही। दोनो अपनी-अपनी स्थिति में स्वतन्त्र हैं। किन्तु उक्त समस्याओं के समाधान के लिए दोनो एकता की शृङ्खला में जुड़े हुए हैं। इनका आपस में वाच्यवाचक सम्बन्ध है। यह भिन्नाभिन्न है। अनि शब्द के उच्चारण से दाह नहीं होता, इससे हम जान सकते हैं कि 'अग्नि पदार्थ' और 'अग्मि शब्द' एक नही हैं। ये दोनो सर्वथा एक नहीं हैं, ऐसा भी नहीं। अभि शब्द से अग्नि पदार्थ का ही ज्ञान होता है। इससे हम जान सकते हैं कि इन दोनो में अमेद भी है। भेद स्वभाव-कृत है और अमेद सकेत-कृत । सकेत इन दोनों के भाग्य को एक सूत्र में जोड़ देता है। इससे अर्थ में 'शब्द शेयता' नामक पर्याय और शब्द में 'अर्थ-ज्ञापकता' नामक पर्याय की अभिव्यक्ति होती है। सकेत-काल में जिस वस्तु के बोध के लिए जो शब्द गढा जाता है वह वहीं रहे, तब कोई समस्या नही आती। किन्तु ऐसा होता नहीं। वह आगे चलकर अपना क्षेत्र विशाल बना लेता है। उससे फिर उलझन पैदा होती है और वह शब्द इष्ट अर्थ की जानकारी देने की क्षमता खो बैठता है। इस समस्या का समाधान पाने के लिए निक्षेप पद्धति है। निक्षेप का अर्थ है-"प्रस्तुत अर्थ का बोध देने वाली शब्द रचना या
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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