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जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा वस्तु जहाँ आरूढ है, उसका वहीं प्रयोग करना चाहिए। यह दृष्टि वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए बहुत उपयोगी है । स्थूल दृष्टि मे घट, कुट, कुम्भ का अर्थ एक है। सममिरुढ इसे स्वीकार नहीं करता। इसके अनुसार 'घट' शब्द का ही अर्थ घट वस्तु है, कुट शब्द का अर्थ घट वस्तु नहीं; घट का कुट में संक्रमण अवस्तु है । 'घट' वह वस्तु है, जो माथे पर रखा जाए। कहीं वदा कही चौटा
और कहीं मंकटा-यू जो कुटिल आकार वाला है, वह 'कुट' है ३३१ माथे पर रखी जाने योग्य अवस्था और कुटिल आकृति की अवस्था एक नहीं है। इमलिए दोनो को एक शब्द का अर्थ मानना भूल है। अर्थ की अवस्था के अनुरूप शब्दप्रयोग और शब्दप्रयोग के अनुरूप अर्थ का बोध हो, तभी सही व्यवस्था हो सकती है। अर्थ की शब्द के प्रति और शब्द की अर्थ के प्रति नियामकता न होने पर वस्तु साकर्य हो जाएगा। फिर कपड़े का अर्थ घडा
और घडे का अर्थ कपड़ा न समझने के लिए नियम क्या होगा। कपडे का अर्थ जैसे तन्तु-समुदाय है, वैसे ही मृण्मय पात्र भी हो जाए और सब कुछ हो जाए तो शनानुमारी प्रवृत्ति-निवृत्ति का लोप हो जाता है, इसलिए शब्द को अपने वाच्य के प्रति सच्चा होना चाहिए । घट अपने अर्थ के प्रति सच्चा रह सकता है, पट या कुट के अर्थ के प्रति नही। यह नियामकता या सचाई हो इसकी मौलिकता है।
एवम्भूत तसमभिरूढ़ मे फिर भी स्थितिपालकता है। वह अतीत और भविष्य की क्रिया को भी शब्द-प्रयोग का निमित्त मानता है। यह नय अतीत और भविष्य की क्रिया से शब्द और अर्थ के प्रति नियम को स्वीकार नहीं करता। सिर पर रखा जाएगा, रखा गया इसलिए वह घट है, यह नियमक्रिया शून्य है। घट वह है, जो माथे पर रखा हुआ है। इसके अनुसार शब्द अर्थ की वर्तमान चेष्टा का प्रतिविम्व होना चाहिए। यह शब्द को अर्थ का और अर्थ को शब्द का नियामक मानता है। घट शब्द का वाच्य अर्थ वही है, जो 'पानी लाने के लिए मस्तक 'पर रक्खा हुआ है-वर्तमान प्रवृत्तियुक्त है। घट शब्द भी वही है, जो घट-क्रियायुक्त अर्थ का-प्रतिपादन करे।