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________________ १५८] जैन दर्शन मे प्रमाण मीमासा __इसका दूसरा अाधार लोक-व्यवहार भी है। लोक व्यवहार में शब्दों के जितने और जैसे अर्थ माने जाते हैं, उन सबको यह दृष्टि मान्य करती है। तीसरा आधार संकल्प है। संकल्प की सत्यता नैगम दृष्टि पर निर्नर है। भूत को वर्तमान मानना-जो कार्य हो चुना, उसे हो रहा है-ऐसे मानना सत्य नहीं है। किन्तु संकल या बागेप की दृष्टि से सत्य हो सकता है। इसके तीन रप बनते हैं : १-भूत पयांय का वर्तमान पर्याय के रूप में स्वीकार (अतीत में वर्तमान का संकल्प ).... भूतनैगम । - २-अपूर्ण वर्तमान का पूर्ण वर्तमान के त्प में स्वीकार (अनिपन्ननिय वर्तमान में निष्पन्नक्रिय वर्तमान मा सक्त्य)..... वर्तमान नंगम । -भविष्य पर्याय का भृतपर्याय के रूप में स्वीकार (भविष्य में भूत का संकल्प)......भावीनैगम! जयन्ती दिन मनाने की सत्यता भत नैगम की दृष्टि मे है । रोटी पानी शुरु की है । किनी ने पूछा अाज क्या पकाया है ? उत्तर मिलता है..."रोटी पकायी है। रोटी पत्री नहीं पा रही है फिर भी वर्तमान नैगन की अपेक्षा "पकाई है" ऐसा कहना सल है। क्षमता और योग्यता की अपेक्षा अकवि को कवि, अविद्वान् को विद्वान् कहा जाता है । यह तभी मत्य होता है जब हम, भावी का भूत में उपचार है, इम अपेक्षा को न भूलें। नैगम के तीन मेट होते हैं :(१) द्रव्य-नैगम। (२) पर्याय नैगम। (३) द्रव्य-पर्याय नैगम। इनके कार्य का क्रम यह है :'(१) दो वस्तुओं का ग्रहण। (२) दो अवस्थाओ का ग्रहण। -(6) एक वस्तु और एक अवस्था का ग्रहण । गम नय जैन दर्शन की अनेकान्त दृष्टि का प्रतीक है। जैन दर्शन के अनुसार
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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