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जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा
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(२ ) वस्तु न भिन्न, न अभिन्न किन्तु भैद-नमेद का समन्वय है। (३) वस्तु न एक, न अनेक किन्तु एक अनेक का समन्वय है । इन्हे बुद्धिगम्य बनाने के लिए उन्होंने अनेक वर्गीकृत अपेक्षाएं प्रस्तुत
कीं । वे कुछ इस प्रकार है :---
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( १ ) द्रव्य ।
( २ ) क्षेत्र ।
( ३ ) काल 1
(४) भाव - पर्याय या परिणमन ।
(५) भव ।
( ६ ) संस्थान * ।
(७) गुण ।
(८) प्रदेश अवयव " ।
( ६ ) संख्या ।
(१०) श्रघ । (११) विधान | ...
काल और विशेष गुणकृत अविच्छिन्न नित्य काल और क्रमभावी धमकृत विच्छिन्न अनित्य होता है । क्षेत्र और मामान्य गुणकृत अविच्छिन्न भिन्न, क्षेत्र और विशेष गुणकृत विच्छिन्न भिन्न होता है । वस्तु और सामान्य गुणकृत अविच्छिन्न एक, वस्तु और विशेष गुणकृत विच्छिन्न अनेक होता है ।
वस्तु के विशेष गुण ( स्वतन्त्र सत्ता-स्थापक धर्म) का कभी नाश नही होता, इसलिए वह नित्य और उसके क्रम-भावी धर्म वनते-बिगड़ते रहते हैं, इसलिए वह अनित्य है । "वह अनन्त धर्मात्मक है, इसलिए उसका एक ही क्षण में एक स्वभाव से उत्पाद होता है, दूसरे स्वभाव से विनाश और तीसरे स्वभाव से स्थिति " वस्तु मे इन विरोधी धर्मों का ये अपेक्षा दृष्टियाँ वस्तु के विरोधी धमों को मिटाने के विरोध को मिटाती हैं, जो तर्कवाद मे उदभूत होता है
सहज सामलस्य है ।
लिए नहीं है । ये उम
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