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आनंद मेघ वर्षाया || सुमेला || ६ || न्यामत जिन दर्शन करलो | जनम जनम अघ हरलो || सुमेला० ॥ ७ ॥
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तर्ज़ ॥ इलाजे दर्द दिल तुमसे मसीहा हो नहीं सकता ||
यह है कर्मों की गति न्यारी किसीसे ना टरे टारी । करो तुम नाश कर्मों का यही दुख कारी सुख हारी ॥ टेक ॥ हरि जो नोमे नारायण भए त्रय खंड के राजा । मुवे पर ना कोई रोया न उत्पति मंगला चारी ॥ १ ॥ सती सीता हरी रावण हुई निन्दा सकल जगमें । रही अंजना बरष बारा पवन के वियोग में न्यारी ॥ २ ॥ रामचन्दर थे बलभद्दर अयुष्या राज जब पाया । कर्म अंतर पड़ा आके फिरे बन बनमें दुखहारी ॥ ३ ॥ पांच पांडव महा जोधा को भी कर्मोंने आ घेरा । द्यूतके संग करने से सब अपनी सम्पदा हारी ॥ ४ ॥ कर्म से वश चला किसका समझ तो न्यायमत इतना | छुड़ाओ कर्म के बंधन जो है वो मोक्ष अधिकारी ॥ ५ ॥ ८९
तर्ज़ ॥ गये भैना पिहरवा नैना बदल | ( चाल ठुमरी)
जिन जीके चरणों में जीया लगा ।
जीया लागा मनको लगा प्यारे जीया लगा जिन० ॥ टेक ॥