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तर्ज ॥ राजा हू मैं कौम का और इन्दर मेरा नाम चाल इन्दर सभा को ॥ चेतन आनंद रूपजी, सुनो हमारी बात तू राजा तिहूं लोक का, है जगमें विख्यात ॥१॥ जिनवाणी माता तेरी, गहो चरण चित लाय । पद जाके से सदा, इन्द्र चन्द्र शिरनाय ॥ २ ॥ करुणा सब पर कीजिए, दिलमें दया बिचार । दया धर्म का मूल है, यह निश्चय मनधार ॥ ३॥ इक संबर दो निर्जरा, शुभ आश्रव मिलचार । यह चतुरंग सेना बनी, जिसका वार न पार ॥ ४॥ समकित है सेनापती, मंत्री ज्ञान निहार । ज्ञान सुता सुमता सती, है तेरी पटनार ॥ ५॥ गुण अनंत है कोशमें, कोषाध्यक्ष सुदान । अन्न औषधि नित दीजिए, अभय दान और ज्ञान ॥६॥ ज्ञान सुमत की सीखमें, रहना चतुर सुजान। यहही हितकारी तेरे, सुखकारी दुख भान ॥७॥ सत्यारथ उपदेश यह, दियो श्री जिनराज । न्यामत मन निश्चय करो, मिले. मोक्ष का राज ॥॥
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तर्ज ॥ लेता जाइयोरे साँवरिया चौड़ी पान पानको ॥ . पीजो पीजोरे चेतनवा पानी छान छानके ॥ टेक॥ निरख. निरख कर पग धर चलना.।
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