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( ३ ) ५ पाणी ने किनारै निद्रादिक कार्य करना कल्यै नहीं।
(वृहत्कल्प उ० १ बोल १६) ६ अन्तर घर में निद्रा लेणी कल्यै नहीं।
.. (वृहत्कल्प उ० ३ बोल २१) ७ साधु ने भाव निद्राई करौ जागतो कह्यो।
(आचाराङ्ग श्रु० १ अ०३ उ०१)
एकाकि साधु-अधिकार
१ ग्रामादिक का घणा निकाल पैसार हुवै विहां घणा आगमना जाण बहुश्रुति ने पिण एकाकि पये न कल्प। .
(व्यवहार उ०६) २ ग्रामादिक तथा सरायादिक ने विषै घणा निकाल
पैसार हुवै तिहां अगडसुया ते निशीथ ना अजाण त्यांने एकाकि पणे न कल्प।
(व्यवहार उ०६) ३ ग्रामादिक ना जुदा २ निकाल हुवै तिहां साध साध्वी ने भेलो रहिवो कल्प।
(वृहत्काप उ० १ बोल ११)