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( ६५ ) १० क्रोधादिक ने भाव संयोगी कथा।
( अनुयोग द्वार) ११ क्रोधादिक ने भाव लाभ कह्यो।
(अनुयोग द्वार) १२ अर्कुशल मनने रूंधवो कह्यो।
(उववाई) १३ माठा भाव थी जानाट्रिक खपै ।
(अनुयोग द्वार) १४ आखव ने, मिथ्या दर्शनादिक ने जीवरा परिणाम कह्या ।
(ठाणांग ठा०६)
खम्बराधिकार
१ पंच सम्बर द्वार प्ररुप्या ।
(टाणा ठा० ५ ० २ तथा समवायाङ्गस०५) २ जीव राजानादिक छव लक्षण का।
(उत्तराध्ययन अ० २८ गा6 ११-१२) ३ चारित्र ने जीव गुण परिणाम कह्या ।
(अनुयोग द्वार) ४ सम्बर ने आत्मा कही।
(भगवती श०१3०६)