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पुण्याधिकार
१ परलोक ने अर्थ तप नहीं करवो।
(दशवकालिक अ० ६ गा०४) - २ गाढ़ा पुण्य न करै तो मरणान्ते पश्चाताप करे।
(उत्तराध्ययन अ० १३ गा० २१) ३ पुण्यपद सांभली भरत चक्रवर्ती दीक्षा लोधी।
(उत्तराध्ययन अ० १८ गा० ३४) ४ अकृतपुण्य ना धणी धर्म सांभलौ प्रमाद करै ते संसार में भ्रमण करें।
(प्रश्न व्याकरण अ० ५) ५ यश नो हेतु तप संयम कह्यो।
(उत्तराध्ययन अ० ३ गा० १३) ६, आत्मा ने अयश अर्थात् असंयम करी जीव नरक में उपजे।
(भगवती श० ४१ उ०१) .७ नरक ना हेतु ने नरक कहौ।
(उत्तराध्ययन अ०६ गा०८) .८ मृग सरिसा अज्ञानी ने मृग कह्यो ।
(उत्तराध्ययन अ० १ गा०५)
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