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( ३२ ) ॥२॥ तमु अष्टम पट काल स्वामी हो, शिवगामी साहेब शोभता, कांई महा गुणां रौ खान। साध सतियां में दीपे हो मन मोहवा, भवियण जौव ने कांई तपे जानु भान ॥३॥ ठंडीरामजी खामी हो विराज्या, उदाशहर में, कांई भिन २ दिया रे समझाय। कई भाया. वायां नहीं आता हो आलस्य संकोच , काई माय नम्या तसु पाय । ४ । बागी सुण हरषाया हो ते समकित लौधौ केई जना, काई होयो घणा उपगार। कई श्रावक रा ब्रत लौधा हो ते कौधा त्याग, वैराग स्यं कोई जान्यो जिन धर्म सार ॥ ५ ॥ भिक्ष गण में भारी हो गुणधारो, साध ने साध्वी कांई पण्डित चतुर सुजाण । उत्तम २ कुल का हो गुणवन्त आजा में रहे, काई लेवा सुख नी खान ॥ ६ ॥ कार्तिक वदी चवदश हो, साल छौयासौ को जानिये। कई उदासर मझार, टीकू तोल गुगा गावे हो ॥ मुख पायो माप प्रसाद थी, काई सेवा करो नर नार ॥ ७॥