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( २६ ) सार हो॥२॥ तसु अष्टम पाट विराज्या श्री काल गणी महाराज। मेहर करी म्हां ऊपर दियो चौमासो कराय हो ॥३॥ ठंडीरामजी सन्त विराज्या दिया घणां जौवां ने समझाय। भव जीवां ने तारवा कांई 'पाप बड़ा मुनिराय हो ॥ ४ ॥ अब उदासर को यह विनती सुन लोज्यो महाराज । सिल्यासौ के साल को दो चौमासो फरमाय हो ॥ ५॥ भायां वायां रे सौखण सुगन को लग रही मन में चाव। जल्दी हुकम फरमावो मुझने होवे घणो उछाव हो ॥ ६ ॥ टीकू तोलू की यह विनती कर लोज्यो प्रमाण। अरजी सुणने मरजौ कोज्यो चौमासो चित्त प्राण हो ॥ ७॥ सम्बत् उगणीसै साल छौयासी माघ मास में आस । शुक्लपक्ष सप्तमी दिन दास करे अरदास हो ॥८॥
॥ ढाल २ जी ॥ लिछमन मूर्छा खाई जब धरण पड़े रघुराई हाहाकार मचाई (एदेशी)
पांचमे आरे पौछानौ, श्री आदि जिनन्द जिम जानी। प्रगटे श्री भिक्षुनाणी, भवि हित 'काम काम काम ॥ निस दिन. ध्याऊ हो गणि नाथ, आप रो नाम नाम नाम ॥ १॥ तमु अष्टम माटे नौको, मूलचन्दजी रो कोको। यह चहू तौरथ सिर टौको, कालू खाम ३ । निस दिन ध्याऊ हो गणिनाथ, आपरो