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( १३ ) कृष्टो ध्यान तणो कियो, आलम्बन श्री जिनराज रे॥ श्र० ॥ ३ ॥ इन्द्रिय विषय विकार थी, नरकादिक कलियो जीव रे। किम्पाक फल नौ उपमा, रहिये दूर थो दूर सदौव रे ॥ ॥ ४॥ संथम तप जप शील ए; शिव साधन महा सुखकार रे । अनित्य अशरगा अनन्त ए, ध्यायो निर्मल ध्यान उदार रे। २ ||५|| स्त्रियादिक ना सङ्ग ते, आलम्बन दुःख, दातार रे । अशुद्ध आलम्बन छोड़ने, धस्यो ध्यान आलम्बन सार रे ॥ श्रे० ॥ ६ ॥ शरणे आयो तुज साहिबा, करूं बारम्बार नमस्कार रे । उगणौसै पूनम भाद्रवे, मुझ वा जय जयकार रे ॥ श्रे ॥७॥
श्री बासुपूज्य जिन स्तवन ।
(ईम जापं जपो श्री नवकार ए एदेशी) द्वादशमा जिनवर भजिये, राग द्वेष मच्छर माया तजिये। प्रभु लाल बरण तन छिव जाणी, प्रभु बासुपूज्य भजले प्राणी ॥ १॥ बनिता जाणी बैतरणी, शिव सुन्दर वरवा इस घणो। काम भोग तज्या किम्पाक जाणौ ॥ प्र० ॥ २॥ अञ्जन मञ्जन स्यं अलगा, वलि पुष्फ विलेपन नहीं विलगा। कर्म काट्या ध्यान मुद्रा ठाणौ ॥ प्रे० ॥३॥ इन्द्र धेको अधिका ओपै, करुणागरः कदे नहीं कोपे। वर शाकर दूध जिसी वाणी