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जैनवाल गुटका प्रथम भाग मानने वाले हम तेरह पंथी जैनी कहलाते हैं सो मुनि के २८ मूल गर्णा में तो मुक्ति नहीं कही सो क्या जैन मुनि तीन गुप्ति नहीं पालते? " .
इस का उत्तर यह है कि जैन के सर्वसाधु अपनी शकि समान तोन मुक्ति का पालन करते हैं उन तीन गुप्ति का वर्णन भावार्य, के गुणो में होचका है. यहाँ साधु के गुणों मै दुवारा इस धास्ते नहीं लिखा कि भावार्य के तो वह मूल गुणों में श्यामिल हैं आचार्य को उन का पालना लाजमी है जो भाषाव्य तीन गुप्ति को न पाले उस का भाचार्य पद खंडित है और साधु के यह तीन गुप्ति । उत्तर गुणों में हैं अगर किसी साधु से कोई गुप्ति किसी काल में न भी पले तो उस से उस का साधुपना खंडित नहीं होता देखो हरिवंश पुराण सफा ५७२ मतिमुक्त महामूनि अषधि मानी ने कंश की राणी जीवंजशा को कहा महो जीवंजशा जिस देवकी के यह वस्त्र तू मुझे दिखाती है इसके पुत्र तेरे पति और पिता के मारने वाला होयगा और भी श्रेणिक चरित्र आदि ग्रंथों में मुनियों से गुप्ति न पलने की ऐसी अनेक कथा है सो मुनि के यह तीन गुप्ति मूल गुणोंमें नहीं है उत्तर गुणों में हैं।
सर्वजैन मुनि इन तीन गुप्तिकाअपनी शक्ति अनुसार पालन करें, परन्तु किसी काल. __मैं किसी साधु से नहीं भी पलती इस धास्ते इनको साधुवों के मूल गुणो नहीं लिया।
. . इति पंच. परमेष्ठि.के १४३ मूल गुणों का वर्णन समाप्तम् ॥ ...: . .: अथ ७ व्यसन का वर्णन।
- १ जुवा, २ मांस, ३ मदिरा, ४ गणिका, [रंडी] ५ शिकार ६ चोरी, ७ परस्त्री।
नोट: इनका खुलासा इस प्रकार है । जूवा उसे कहते हैं जो पैसा,रुपैयां,गिनी, नोट, जेवर वगैरा या मकान, जमीन, असबाब, कपडा, हाथी, घोडास्त्री पर भांग को दावपर लगाकर खेलना या ताश शतरंज चौपड घुडदौड,अंटा मादि दूसरे का धन लेने ;
और निज-धना देनेकी बाजी लगाकर खेलना, पानीका सष्टा अफीमका सहावा अनाज सोना चांदी भादि का सष्टा बधनी यह सब जूधाहै जिसके ज्वे का त्याग हो वह किसी प्रकार का सक्ष या पधनी का सौदा नहीं कर सकता और ने धुड़दौड़ का टिकट सकता न किसी वस्तु की लाटरीमैं आप हिस्सा ले सकताहै यह सब गया है जिसके पो जूधे का ऐब लग जाता है यह मेहनत करके कमाने लायक नहीं रहतावह जो