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जनवालगुटका प्रथम भाग। .' मनवचतनतेत्यागवो, पञ्च महाबत थाप॥ ३१ ॥
मर्थ-१ महिंसा महाबत, २ सत्यमहानव, ३ अचौर्य महाव्रत, ४ ब्रह्मचर्य महा. वत, ५परिग्रहत्याग महानत यह पांच महावत हैं ।।
नोट-सुनों के वास्ते यह पांच महावत हैं श्रावक के वास्ते यह पांच मानत हैं इन पांच व्रतों के घरखिलाफ पांच पापो की पांच कथा बडे सुकुमाल चरित्र में पृष्ट २२ले ३२ तक लिखी हैं जो मोती समान छपा हुवा हमारे यहां से १) रुपये में मिलता है जिसे वह कथा देखनी हो उसमें देखें ।।
• " ५ समिति । दोहा। ईर्ष्या भाषा एषणा, पुनि क्षेपण आदान।
प्रतिष्ठापनायुत क्रिया, पांचों समिति विधान ॥ ३२॥ अर्थ- या समिति-परमागम की आज्ञा प्रमाण प्रमाद रहित यलाधार से जीवों की रक्षा निमित भूमि को देख कर गमन करना तिस का नामईयासमिति है।
२भाषा समिति काल के योग्य अयोग्य को विचार कर संदेह रहित सूत्र की माशा प्रमाण हित मित वचन बोलना तिसका नाम मापा समिति है।
३ एषणा समिति-जिहा इंद्रियको लंपटताको याग आचारांग सूत्रके हुकम प्रमाण उन्हमादि ४६ दोष ३२ अंतराय टार आहार करना तिसका नाम एषणा समिति है।
४ आदान निक्षेपणा समिति-प्रमाद रहित यानाचार से शरीरादिक मयूर पिच्छिका, कमंडलु, शास्त्र यह उपकरण जीव हिंसा के कारण टार सहज से रखने सहज से उठावने तिसका नाम आदान निक्षेपणा समिति है।
५प्रतिष्ठापना समिति-जीव रहित भूमि विषे तथा जहां जीवों की उत्पत्ति होने का कारण न हो ऐसो भूमि विषे यत्नाचार से मल मूत्र, कफ, नासिका का मल नख,केशादि क्षेपना(डालना)तिस का नाम प्रतिष्ठापना समिति है यह पांचसमिति हैं
५ समिति के अतिचार (दोष) । १ गमन करते समय भूमिको मले प्रकार नहीं देखना और धन, पर्वत, वृक्ष नगर, बाजार, तथा मनुष्यों का रूप आदि देखते हुए चलना इत्यादि ईर्यासमिति के अतिवार हैं।
२ देश, काल के योग्य अयोग्य का नहीं विचार करके पूर्ण सुने बिना पूर्ण जाने बिना बोलना इत्यादि भाषा समिति के अतिवार हैं।