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________________ नैनवाल गुटका प्रथम भाग। उपशम। उपशम नाम है दयजाने का शांत हो जाने का कमजोर हो जाने का जैसे तेज भग्नि चलती हुई शांत हो जावे उसको तेजो घट जावे उसी प्रकार जब कर्मका बल घट जावे उसे उपशम कहते हैं। क्षयोपशम । इस पद में क्षय और उपशम दो शब्द हैं उपशम का अर्थ ऊपर बता चुके हैं क्षयका भर्थ है नष्ट हो जाना जाता रहना नाश को प्राप्त हो । सो जब कर्म की दो हालत होती है उस का जोर भी घट जाता है वह शांत हो जाता है और किसी कदर घटता भी जाता है नष्ट भी होता जाता है उस हालत में जो कर्म हो उसे कर्म का क्षयोशम कहते हैं। क्षय का अर्थ नष्ट होना बता चुके हैं सो जैसे काफूर की डली पडी २ घटनी शुरू हो जाती है इस हालत में जब कर्म हो जो घटता ही चला जावे उसका नाम कर्म का क्षय कहलाता है अर्थात् कर्म का क्षय होता है। सम्यत्तव की उत्पत्ति। जब इस जीव के दर्शन मोह का उपशम या क्षय या क्षयोपशम होय तब इस के सम्यक उत्पन्न होय है वगैर दर्शन मोह के उपशम या क्षय या क्षयोपशम के सम्यश्व की उत्पत्ती होती नहीं सो यह सम्यक दो प्रकार से उत्पन्न होय है या तो स्वतःस्वभाव या दूसरे के उपदेश से सो इन में से एक तो निसरगंज सम्यक्त्व कहलाता है दूसरा अधिगमज सम्यक्त्व कहलाता है। निसर्गज सम्यक्त्व। निसर्गज शब्द का अर्थ है (स्वतःस्त्रमाव) कुदरती खुदयखद सो जो सम्याच स्वतःस्वभाव खुदवखुद वगैर किसीके उपदंशके उत्पन्न होवहनिसर्गज सम्यक्त्व है। अधिगमज सम्यक्त्व । भधिगमज शब्दका अर्थ है प्राप्तता हासिलना सो जो सम्यतय किसी दूसरे के उपदेश से उत्पन्न होवे यह अधिगमज सम्यक्त्व कहलाता है जो सम्यतव पढ़ने से होवे यह भी अधिगमजसम्यत्व है शास्त्र भी दूसरे का उपदेश है किसी को जवानी समझाना या लिखकर समझाना दोनों ही उपदेश हैं। बीतराग सम्यक्त्र । निजात्म स्वरूपकी विशुद्धता सो पीतराग सम्यतय है।
SR No.010200
Book TitleJain Bal Gutka Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherGyanchand Jaini
Publication Year1911
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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