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[जैनबालगुटका प्रथम भागा १२ बहुश्रुतभक्ति, १३ प्रवचनभक्ति, १४ आवश्यकापरिहाणि, १५मार्गप्रभावना १६प्रवचनवात्सल्य ॥
नोट-यह तीर्थकर पद के देन वाली हैं, जो इन को भावे यानि इन रूप प्रवर्ते उस के तीर्थंकर गोत्र का बन्ध पड़ता है।
. अथ सम्यक्त्व का वर्णन। हे वालको भव हम तुम्हें कुछ सभ्यता का स्वरूप समझाते हैं ।
सम्यक्त्र॥ अब यह बताते हैं कि सभ्यता किसको कहते हैं इसके तीनजुज़ हैं सम्यग्दर्शन २ सम्यग्ज्ञान ३ सम्यक् चारित्र सो इनका अलग अलग मतलव इस प्रकार है कि
सम्यक् । सम्यक् शब्द का अर्थ सत्य यथार्थ, असल, ठोक है सम्यक शब्द का अर्थ सत्यता यथार्थता, असलीयत है।
- दर्शन। . दर्शन नाम देखने का है परंतु जिस प्रकार बाज बाज स्थानों पर इसका अर्थ जानना सोना धर्म नियम नेत्र दर्पण भी है अन्य मत में १ सांख्य र योग ३ न्याय । वैशेषिक ५ मीमांसा ६ वेदांत इन छै शास्त्र का नाम भी षट् दर्शन है इसी प्रकार हमारे जैन मत में दर्शन नाम श्रद्धान का है ईमान लाने का ऐतकाद लाने का है निश्चय लाने का है मानने का है ॥
ज्ञान। शाम नाम जानना, पाकफियत तमोज लियाकत मालूमात समझतथा बुद्धिका है ।।
चारित्र। चारित्र नाम माचरण प्रवर्तन चलन आदत चाल चलन का है।
सम्यग्दर्शन। सम्यग्दर्शन-नाम सत्य श्रद्धान का है जिस प्रकार जीवादिक पदार्थों का जो असली स्वरूप असली स्वभाव है उस का उस हो रूप श्रद्धान होना जैसे कि अपने तेई ऐसा समझना कि यह मेरा शरीर मेरी आत्मा से भिन्न है यह जड़ें हमें इस से मिन्न चेतन हूं मान दर्शन मेरा स्वभाव ह ऐसे कंवली कर कहे तत्वों में शंकादि दोप रहित जो मचल प्रधान तिसका नाम सम्यग्दर्शन है।