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जैम, बालगुटका प्रथम भाग ।
१२ भावना ।
१ अनित्य, २ अशरण, ३ संसार, ४एकत्व, ५अन्यत्वं, ६ अशुचि ७ आश्रव, “संवर, ९ निजरा, १०लाक, ११ बोधिदुर्लभ, १२ धर्म ॥ अथ बाईस परीषह |
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१ क्षुधा, २ तृषा, ३ शीत, ४ उष्ण, ५ दंश मशक, ६ नाग्न्य, ७ अरति, ८ स्त्री, ९ चर्य्या, १० आसन, ११ शयन, १२ दुर्बचन, १३ वध बंधन, १४ अयाचना, १५ अलाभ, १६ रोग, १७ तृणस्पर्श १८मल, १२ असत्कार, २० प्रज्ञा (मद न करना) २१ अज्ञान, २२ अदर्शन ॥ नोट - जैन मुनि यह २२ परीपद सहते हैं।
६ रस ।
१ दही, २ दूध, ३ घी, ४ नमक, ५ मिठाई, ६ तेल ।
५ चारिच ।
१ सामायिक, २छंदापस्थापना, ३ परिहार विशुद्धि, ४ सूक्ष्म साम्पराय, ५ यथाख्यात ॥
नोट -- यह ५७ किया ५७ लम्बर कहलाती हैं ॥
नोट- बहुत से नर नारी रस का त्याग करते हैं परन्तु कितने ही यह नहीं
कुपढ़ लोग खट्टा मिठा कडवा
जानते कि रस किस को कहते हैं उन को बाजे बाजे कसायला चरचरा और खारा इन को है रस बताते हैं यह उनकी गलती है क्योंकि तत्वार्थ सूत्र क भठवें अध्याय के ग्यारवै सूत्र में जो रसों का वर्णन है वहां खड्डा, मिट्ठा, कडवा, खारा, चरचरा, यह रस विधान करे वह बाबत कर्म प्रकृति के लिखे हैं सो सिरफ पांच लिखे हैं, चिकना शोत उष्ण की साथ स्पर्श प्रकृत्ति में वर्णन करा है सो वह और बात है । मुनिके लिये जो रस परित्याग का वर्णन है वहां दही, दूध, घी, नमक, मिठाई, और तेल यही छे रस लिखे हैं देखो रत्नकरंड श्रावकाचार पृष्ट २६१, पस जनमत में दही, दूध, घी, नमक, मिठाई, भोर तेल यही ६ रस हैं जिन को कोई रख किसी दिन छोड़ना हो इन्हीं में से ही छोड़े ।